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दुखद समाचार: महर्षि अब्दुल कलाम का महा-प्रयाण

साधकों को मृत्यु के समय बैठा कर दफनाया जाता है ताकि प्रतीति हो कि साधक अंतिम समय में भी समाधिस्त थे। परंतु कर्मयोगी महर्षि कलम ने कर्त्तव्य रत रहते हुए (छात्रों को संबोधित करते-करते) ही महाप्रयाण किया। ऐसी ऋषि दुर्लभ मृत्यु केवल महर्षियों को ही सुलभ है।

रामेश्वरम शैवों का बड़ा तार्थस्थल तो था ही, पर कलम साहब के जन्म लेने से अब वह विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों व समर्पित राजनेताओं के लिए भी एक तीर्थ बन गया है।

मैं ईश्वर से उनकी मुक्ति की प्राढ़तना नहीं करूंगा, बल्कि याचना करूंगा कि देश व मानवता के हित में उन्हें एक बार फिर से भारत में ही उत्पन्न करे। देश को उनकी दूसरी पारी की बहुत आवश्यकता है।