Kanyakubj Brahmins

Again A Very Important Thought

फालतू प्रपंच
एक रोज़ सुबह काज़ी का 4 वर्षीय बेटा नाश्ते के बाद छत की मुंडेर पर खड़ा एक हड्डी का पीस चूस रहा था। नीचे से एक पंडित जी गंगा स्नान कर मंत्रों का जाप करते गुज़र रहे थे। शैतान ने ने अच्छा संयोग देख कर बस बच्चे के हाथ पर एक थपकी ही तो दी। हड्डी का टुकड़ा अबोध के हाथ से उछल कर पंडित जी की गंजी चाँद पर जा गिरा। पंडित जी हतप्रभ! इधर उधर देखा- कुछ लोग मुंह पर हाथ रख कर हंस रहे थे। यदि किसी ने न देखा होता तो पंडित जी चुपचाप निकल जाते। ठंड में दुबारा नहाने से बच जाते। पर लोगों ने देख लिया। फिर तो सहन नहीं किया जा सकता। गाली गलौज से प्रारम्भ होकर घटना का मारकाट, दंगे और कर्फ़्यू में अंत।

शैतान सोच रहा था- इसमे मेरी क्या गलती? (शैतान की डायरी—शौकत थानवी)

एक बार शैतान की ऊपर लिखित मासूमियत में डूबे दूरदर्शन के एक संवाददाता ने शंकराचार्य जी से पूछ दिया: महराज साई बाबा की उपासना क्या हिन्दू धर्म के अनुरूप है?।

शंकराचार्य: नहीं यह धर्म विरुद्ध है। साई हमारे धर्म के नहीं हैं। हिंदुओं को उन्हें नहीं पूजना चाहिए।

तत्काल ही न्यूज़ पर आ गया  ‘साई विरोधी शंकराचार्य’; ‘शंकराचार्य ने साई पूजन का विरोध किया’।

उसके बाद ही साई भक्तों की प्रतिक्रिया ली गई। लो... टीवी पर बहस प्रारम्भ। बहस भाग कर्ताओं के झगड़े में बदल गई। प्रतिक्रिया में सड़कों पर साई व शंकराचार्य के भक्तों के एक दूसरे के खिलाफ प्रदर्शन और नारे बाजी शुरू हो गई....

भाड़ में जाय पब्लिक, चैनल की टीआरपी तो बढ़ ही गई; जिसके लिए उसे पगार मिलती है।

ऐसा ही खुराफाती प्रश्न चुनाव के दौरान भी शंकराचार्य से पूछा गया। शंकराचार्य के उत्तर देने के तरीके को किसी ने भी स्वीकार नहीं किया। पर क्या ऐसे विवादास्पद सवाल पूछना जनहित में उचित है?

सभी जिम्मेदार नागरिकों का उत्तर होगा- ‘नहीं’

यदि यही प्रश्न किसी अन्य धर्म के धर्म-गुरु से पूछा गया होता तो उनका भी वही उत्तर होता जो कि शंकराचारी का था।

हजारों श्रद्धालु (दोनों तबकों के) बड़े-बड़े फकीरों की दरगाह पर माथा टेकने जाते हैं। वहाँ जाने से किसी का भी धर्म नहीं भ्रस्ट होता। श्रद्धा किसी एक धर्म की चेरी नहीं है। धर्म तो ज़्यादातर लोगों को जन्म से मिलता है। पर श्रद्धा मनुष्य के अपने अनुभव से जन्म लेती है इसमे किसी बहस या सही गलत की कोई जगह नहीं है।
इसको न छेड़ा जाय।