Kanyakubj Brahmins
Aruna Shanbaug's 42-year Ordeal Comes to an End: All You Need to Know
42 वर्ष की यातना का अंत
एक ऐसी नवयुवती (उपचारित अरुणा शानबाग) जिसने मात्र सेवा करने की शपथ उठाई थी वह स्वयं ही सेवाकर्मी की हवस का शिकार बनी (कुछ सप्ताह बाद ही उसकी शादी होने वली थी)। शिकारी तो मात्र कुछ पुलिसिया डंडे व सात साल की “कैद बामशक्कत ?”काट कर अब आराम की जिंदगी जी रहा होगा। पीडिता.....वह 42 साल से मृत्यु से भी यातनामय परिस्थियों में ह्जुलती रही। चेतना का नाम ही जीवन है परन्तु वह संज्ञा-हिन थी। उसे मात्र चिकित्सा शास्त्र की परिभाषा के अनुसार ही जीवित माना जाता था। इसलिए उसके लिए 'दया-मृत्यु' (मेडिकल युथेनेजिया) की उच्चतम न्यायालय से अनुमति मांगी गई। परन्तु....परन्तु ऐसे में पीड़ित की अन्य साथियों जिन्होंने उसके साथ ही सेवा करने की सपथ उठाई थी, वह सामने आ गई। उनका कहना था की जब वह सेवा करने के तैया है तो पीडिता को बोझ न माना जाय। उन नर्सो के लिए जीवित थी। वह पीडिता के चेहरे के दुःख-सुख के भाव समझती थी। इसलिए नर्सो ने दया-मृत्यु की याचिका का विरोध किया। वह चेतना शून्य थी परन्तु काल के गा टी के असर से वह धीरे-धीरे वृधावस्था को प्राप्त कर एक तरीके से स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुई।
यह घटना जहा एक ओर मानवता का सबसे भयानक चेहरे को उजागर करती है वही मानवता का मृदुल चेहरे के भी दर्शन कराटी है। चिकित्सा विज्ञानं में संज्ञा-हिना रोगी की देख-भाल सबसे कठिन एवं यातनामय मानी जाती है.ज्यादातर मरीज पौष्टिक की कमी, बेड-सोर, गुर्दे या फेफड़े के संक्रमण से मर जाते है। परन्तु ऐसे मरीज को 42 साल तक मात्र सेवा के द्वारा जीवित रखना उप्चारिकाओ करुणा व सेवा भाव की पराकाष्ठा प्रस्तुत करता है जो की अतुलनीय है, वन्दनीय है। पीडिता की हादसे के समय की सहकर्मी नर्से में सेवा लगन हमजोली के प्रति सहानुभूति से प्रेरित हो सकती है, परन्तु आने वाले 42 साल तक हर नर्सिंग बैच तन्मयता से पीडिता की सेवा की! यह नर्सो के सेवा भाव को ही दर्शाता है।
सभा के सभी सदस्य सभी भारतवासियों के साथ ऐसी सेवाकर्मीयों का नमन करते है।
कहते है की संत पापियों के पाप अपने उपर ले लेते है जिससे पापी की आत्मा मुक्त हो सके। पीडिता के कष्टों ने यह बता दिया की पापी का पाप कितना भयानक था जिसके लिए उस संत को 42 साल की यातना झेलनी पड़ी।
एक तथ्य और बड़ी तेजाई से उभरता है की हमारी उप्चारिकायें स्सेवा कार्य के दौरान चिकित्सालय परिसर में असुरक्षित रहती हैं।